Friday 2 August 2019

राय साहब सांगीदास जी थानवी

जननी जणे तो ऐहड़ा जण भगत,दाता या शूर।

नही तो रहीजे बांझणी~तू मत गमाजे नूर।।

_दानवीर सेठ रायबहादुर सांगीदासजी थानवी का जन्म फलोदी निवासी पुष्करणा ब्राह्मण श्री जैसीरामजी थानवी के घर विक्रम संवत् १९४६ श्रावण सुदी ६ शुक्रवार तदनुसारः दिनांक 2 अगस्त, 1889 को हुआ था।_

_मुंबई में रजत और रुई वायदे के कुशलता पूर्वक व्यापार से आप ने बहुत धन और यश कमाया।_
 _धन का प्रचण्ड प्रवाह उनके पक्ष में होने से उनकी विशाल हृदयता,परोपकारी प्रवृत्ति आदि सदगुणों के पल्लवित होने, पुष्पित होने एवं फलित होने में चार चांद लग गये।_
_वे गरीब को गणेश मान उसकी सेवा-शुश्रूषा करने में नहीं थकते, कभी पीछे नहीं हटे। इस प्रकार अपने सम्पूर्ण जीवन में कोई पचास लाख रूपये का ज्ञात व अज्ञात (गुप्त) दान दे, वे यशस्वी बने। उनका यही उच्च कोटि का सुकृत्य आदर्श था। वे दानी कहे जाने लगे।_
_वे शिक्षा प्रेमी भी उच्च कोटि के थे। जोधपुर रियासत में शिक्षा-प्रचार कार्य न्यून स्तर पर हो रहे थे। शिक्षा का विकास अति-आवश्यक था।_
 _श्री सांगीदासजी थानवी ने पुष्टिकर स्कूल (जोधपुर) मे जैसीराम जगन्नाथ हॅाल का निर्माण करवाकर शिक्षा-जगत में अनूठे योगदान का नया अध्ययाय भी जोड़ा।_

_महामना मदनमोहन मालवीय 1 फरवरी, 1923 को बनारस विश्वविद्यालय के लिए अनुदान एकत्र करने मुम्बई पहुँचे और देश की धनाढ्य विभूतियों से सम्पर्क स्थापित कर जो राशि प्राप्त की उसमे श्री सांगीदास थानवी का नाम अग्रणी हैं। इस विश्वविद्यालय के लिए उन्होंने रू. 2,51,000/- (दो लाख इक्यावन हजार रूपये) दान मे देकर राजाओं से भी आगे बढ गये थे।_
_प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारत की अंग्रेजी सरकार ने भारतीय जनता से ऋण प्राप्त करने हेतु ऋण पत्र जारी किये। मुम्बई में भी सांगीदास थानवी ने रू. 3,50,000/- (साढ़े तीन लाख रूपये) के ऋण-पत्र क्रय किये।_ _चूँकि सरकार को महायुद्ध में भारी व्यय करना पड़ रहा था, यह अनुभूत कर श्री सांगीदास थानवी ने वे ऋण पत्र ही लौटा दिये। इस अति-विशाल हृदयता के समक्ष अंग्रेज सरकार नतमस्तक थी।_ _भारत में उन्हें ऐसा अन्य दान-दाता नहीं मिला था। इस अतिविशाल हृदयता से कृतार्थ हो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘रायसाहब’ की उपाधि से विभूषित किया था।_
 *_जोधपुर रियासत के एक नागरिक को यह उपाधि प्राप्त होने का यह प्रथम अवसर था।_*
 _ब्रिटिश सरकार के भारत में तत्कालीन वायसराय लॅर्ड चेम्स फोर्ड स्वयं जोधपुर आये और विशाल जनसमूह एवं राजदरबारियों के समक्ष इस उपाधि का पदक श्री सांगीदासजी थानवी को प्रदान किया।_

 _श्री सांगीदासजी थानवी तब से दानवीर के साथ ‘रायसाहब’ हो गये।_
_रायसाहब सेठ श्री सांगीदासजी थानवी की मित्रता राजघरानों के सदस्यों से वैसी ही थी जैसी साधारण व्यक्तियों से। वे माकूल समन्वयवादी समायोजित एवं संयमी थे। तत्कालीन बीकानेर महाराजा श्री गंगासिंहजी उनके निकट मित्र थे तो तत्कालीन जोधपुर नरेश श्री उम्मेदसिंह से भी उनकी गाढ़ी मित्रता थी, फिर मानवीय दृष्टिकोण में संकीर्णता लेशमात्र भी नहीं थी।_

_समाज संगठन के लिए किए प्रयास इस प्रकार हैं। सन् 1917 ई. से सन् 1926 ई. तक भारत मे अखिल भारतीय पुष्करणा महासभा के कुल नौ सम्मेलन हुए। इसमे प्रथम सम्मेलन उन्हीं के प्रयासों एवं सलाह से जोधपुर में हुआ। द्वितीय अधिवेशन, जो बीकानेर में आयोजित हुआ था, को सफल बनाने के लिए राय साहब सेठ श्री सांगीदासजी थानवी ने सम्पूर्ण व्यय अनुमानतः रू. 20,000/(रूपये बीस हजार) लगाये।_

_लक्ष्मी के लाड़ले पुत्र त्यागवीर, दानवीर, कर्मवीर एवं संवेदनशील रायबहादुर सेठ श्री सांगीदासजी थानवी की दानवीरता एवं अन्य कई सुकृत्य आज एक आदर्श कहानी बनकर ही न रह जाएं, इसके लिए उनके द्वारा सुजित कार्यों को जब तक हम अबाध गति से, अनवरत, यथावत चालू न रखेंगे उनके प्रति हमारी श्रद्धांजलि भी अपूर्ण रहेगी।_

_मुंबई मे 31 अक्टूबर, सन् 1937 ई. (एकता दिवस) रविवार तदनुसार कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी (धनतेरस) (जिस दिन फलौदी पुष्करणों के आदि पुरुष सिद्धूजी कल्ला सं. 1545 वि. को इतिहास की गोद में समा गये थे), को वह व्यक्ति सिद्धुजी कल्ला के पदचिन्हों पर चलता उन्हीं के चरणों मे समा गया।_

 _राय साहब अल्पायु मात्र बावन वर्ष तीन माह में ही अपने नश्वर शरीर को त्याग गये, जिसका हमे अत्यन्त दुःख है।_

कोटिश:नमन

1 comment:

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