फलोदी माँ लटियाल की पावन भूमि हें साधु संतो द्वारा इसे पश्चिम काशी कहा जाता हें फलोदी की स्थापना से पूर्व यह विजयपुर नाम से जाना जाता था जो कालचक्र द्वारा विनष्ट हो चुका था फलोदी की स्थापना 1515 मे माँ लटियाल की अनुकम्पा से सिद्ध पुरुष सिद्धूज़ी कल्ला द्वारा की गयी ⛳
⛳⛳सिद्धू ज़ी कल्ला क़ा फलोदी आगमन व फलोदी की स्थापना ⛳⛳
सिद्धूज़ी अर्वाचीन फलोदी कें संस्थापक थे इनका जन्म आसनीकोट मे हरपाल ज़ी लूद्र कें घर 1475 मे हुवा वे अपने परगने कें शासक थे तथा लगतार जेसलमेर राजा कें साथ विवाद कें कारण चिंतित थे माँ लटियाल कें आदेशानुसार सिद्धूज़ी ने आसनीकोट जेसलमेर से इन्द्रलोक से अवतरित अपनी अधीष्टत्री देवी माँ लटियाल 140 गाडो व 70 व्यक्तियों कें काफिले कें साथ पलायन किया ओर माँ लटियाल की आज्ञानुसार जहा मेरा रथ रुकेगा वही निवास होगा यह प्राचीन विजयनगर का भाग्य था की यही खेजड़ कें पेड़ मे माँ लटियाल क़ा रथ अटक गया ओर यही पर फलोदी की स्थापना हुवी
फलोदी कें समंध मे पौराणिक मान्यता हें की यहा पानी की समस्या थी तब सिद्धू ज़ी ने सोचा यह फलीभूत केसे होगा तब माँ लटियाल ने फलने फूलने क़ा वरदान दिया जिससे इस स्थान क़ा नाम फलवर्धीका पड़ा
फलोदी स्थित किले कें निर्माण फला नामक पुष्करणा ब्राह्मण की विधवा पुत्री द्वारा करवाया गया था इसलिए राजा द्वारा इस स्थान क़ा नाम फला+धी फलाधी रखा गया जो वर्तमान मे अपब्रस फलोदी से पहचाना जाता हें
⛳⛳ माँ भगवती लटियाल कें नाम की चर्चा
माँ भगवती लटियाल की लटे बिखरी हुवी हें इस कारण लटियाल पुकारते हें (ललिता सहस्त्रनाम)
⛳⛳मन्दिर की स्थापना व स्वरूप
माँ लटियाल कें मन्दिर क़ा निर्माण सिद्धूज़ी कल्ला द्वारा करवाया गया था जो चबूतरे पर था बाद मे भक्तो व उपासकों संख्या बढ़ने पर विद्वान फुठुर ज़ी व्यास व पन्नालाल ज़ी छगाणी द्वारा वेदिक रीति से माँ लटियाल को सिहासन पर स्थापित की गयी तत्पश्चात बंशीलाल ज़ी व्यास द्वारा स्वर्ण शिखर की स्थापना कर प्रतिष्ठा सम्पन की वर्तमान मन्दिर क़ा निर्माण 21 नवम्बर 1929 को तत्कालीन हाकिम भावीसा की उपस्थिति मे किया गया
मन्दिर मे सवंत 1515 से आज तक (500 वर्षो से अधिक ) केसर ज्योति जल रही हें इस ज्योति मे काजल की जगह केसर उत्पन होता हें जो माँ लटियाल क़ा चमत्कार हें
Mohit M Purohit
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