Saturday 8 April 2023

महामानव सेठ अनोपचंद् जी हुडिया

फलोदी को आवश्यकता है आज फिर ऐसे महामानव की -- अब स्मृति शेष है -- महामानव स्व. अनोपचंद जी हुडिया " सेवा ही परमोधर्म व अहिंसा ही जीवन " यह मुल मंत्र लेकर जीवन जिये जीवनप्रयंत कर्मयोगी व महामानव अनोपचंद जी हुडिया । 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 सेवा ही परमोघर्म व अहिंसा ही जीवन यह मुल लेकर फलोदी की धरती पर 21 मार्च 1922 को एक महामानव श्रीमती गवरादेवी व वीरचंद जी के धर अवतरित हुआ वह शक्सियत महामानव थे स्व. अनोपचंद जी हुडिया जो फलोदी के प्रमुख समाजसेवी थे सैकेण्डरी स्कुल तक शिक्षा सरदार स्कूल जोधपुर से ग्रहण करने के बाद व्यापार आरम्भ किया शहर के प्रमुख व प्रबुध व्यवसायी रहे ओर फलोदी मे 35 वर्षों तक निरंतर भ्रमणशील आई कैम्प का आयोजन अपने मित्र पुर्व कैबिनेट स्वास्थ्य मंत्री मोहन जी छँगाणी से निवेदन कर फलोदी दी मे आरम्भ करवाया उसकी सारी व्यवस्था व खर्च की जिम्मेदारी स्वयं व भामाशाहो के सहयोग से करने की ली ओर निरंतर हर साल बडा आँखों का केम्प लगाते ओर उसमे 600से 700 लोगो का निशुल्क आँखों का आँपरेशन करवाते ओर मेडिकल एड देते । इस प्रकार सबसे बडी मानव सेवा बिना प्रचार व राजनीति के करते । इसके अतिरिक्त जीवनप्रयंत मुकप्राणीयो व गाय व पशुओं की सेवा भी करते रहे अकाल जब राजस्थान मे पडा सम्पूर्ण फलोदी मे " मारवाड़ अकाल सेवा समिति " के सदस्य रहकर भामाशाहो के सहयोग से पशुधनको बचाने का बीडा उठाया ओर केटल्स कैम्प ,व रियायत दर पर पशुओ हेतु चारा उपलब्ध करवाते रहे ।ओर पींजरा पोल गोशाला फलोदी ओसवाल समाज से भी जुडे हुए रहे तथा ओसवाल न्याती समिति फलोदी के अध्यक्ष भी रहे । भादरिया गोशाला सेवा समिति के सदस्य रहे । जैन मंदिर ट्रस्ट ओसियां के उपाअध्यक्ष रहे । तथा कई जैन मंदिरों के जीर्णोद्धार मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई व सेवाये दी जिसमे खीचन , देणोक, आऊ है घर्मशालाओ का भी जीर्णोद्धार करवाया । दादावाड़ी खीचन व दादावाड़ी देवल खीचन इसके अतिरिक्त इनकी सेवाओं से माननीय मुख्यमंत्री जी अशोक जी गहलोत निजी तोर पर बहुत प्रभावित थे इसलिए उन्होने इन्हें दो बार नगरपालिका फलोदी मे मनोनीत सदस्य बनाकर इनकी सेवाये व अनुभव का लाभ शहर के लिए लेने का प्रयास किया । आप न्यायपालिका से भी लोकअदालत के माध्यम से जुडे रहे ओर कई मामले आपकी मध्यस्थता मे सुलझे । आप फलोदी रिलीफ सोसायटी फलोदी चिकित्शालय के भी सदस्य रहे ओर सेवा दी है । आप जैन तीर्थ संधो का भी कई बार नेतृत्व कर जैन तीर्थों की यात्राये की है । सदा सादा जीवन व उच्च विचार लेकर जीवन जीये ओर मानव व मुकप्राणी सेवा जीवनप्रयंत करते रहे ओर दुनिया को जाते जाते " सेवा ही परमोघर्म व अहिंसा ही जीवन है " का संदेश देकर अचानक हमारे बीच से यह महामानव 13 -6- 2013 को चले गये इनका स्वर्गवास हो गया । मानवता का यह पुजारी आज हमारे बीच नही है पर इसके कार्य व कार्यशैली आज भी हमारे बीच है इनका परिवार वैलसेटल्ड है ओर इनकी सेवा की यह विरासत उसी स्टाईल मे इनके पोत्र चंदुलाल जी हुडिया व भैया जी ने संभाली हुई है निरंतर दादा की तरह ही मानव व मुकप्राणीयो की सेवा मे लगे हुए है चंदुलाल जी महावीर इंटरनेशनल संस्थान से भी निरंतर जुडे हुए है ओर सेवाये दे रहे है ओर दादा के संस्कारों व विरासत को आगे बठा रहे है । आज हमारे बीच यह कर्मयोगी ,महामानव नही पर इनकी सेवाएं व जीवन शैली हमारे हृदय मे जिंदा है । परम श्रद्धेय अनोपचंद जी हुडिया इस शहर के महामानव , मानवता के पुजारी को विनम्र श्रद्धांजलि व सादर नमन । जय जिनेन्द्र 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Wednesday 12 February 2020

#परम_वैष्ण्व_श्री_सागरीया_बाबा भक्ति के कई रूप हे वेष्णव संप्रदाय या धर्म भी भक्ति का एक प्रकार हे वेष्णव सम्प्रदाय की यह भक्ति का नाम पुष्टिमार्ग हे पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय के संस्थापक महाप्रभुजी हे वल्लभाचार्य महाप्रभुजी ने देश के कोने कोने मे पुष्टिमार्ग का प्रचार किया महाप्रभुजी के पुत्र विट्ठलनाथ जी थे उन्होने 252 वेष्णवो की वार्ता की थी जो त्रिवेणी नाम से प्रसिद्व हुवी इन 252 वेष्णवो मे 49 वे वेष्णव पुरुषोतम दास वेष्णव जो पुष्करण ब्राह्मण थे लेकिन फलोदी मे पुष्टिमार्ग का अत्यधिक प्रचार प्रसार श्री मगदत्त श्री गौपाल पुरोहित (सागरिया बाबा ) ने किया फलोदी की सीमा के बंधन से पुष्टिमार्ग गौरव काक राष्ट्र स्तर तक ऊंचा उठाया आपकी निष्ठा ,सेवा त्याग औऱ प्रचार से विश्व के सभी वेष्णव प्रभावित हे पूर्व मे आपा श्रीनाथ जी मंदिर नाथद्वारा मे पुजा सेवा कर चुके हे आपके के ही सदप्रयासों से ही फलोदी मे पुष्टिमार्गीय प्रथम मंदिर हवेली की स्थापना दि. 24 जून 1985 तदनुसार संवत 2042 आषाढ़ शुक्ला छठ क़ो मथुरा से मूर्ति लाकर गोस्वामी श्री बृजलालभूषण जी के द्वारा की गयी हवेली के षष्ठ ही गिरिराज जी का मंदिर भी स्थापित हे फलोदी मे पुष्टिमार्गीय हवेली स्थापित होने से भक्तो नयी चेतना आई हे ठाकुरजी सबका भला करे जय श्री कृष्णा मोहित एम पुरोहित 8290114198

Friday 17 January 2020

श्री हेमचन्द जी पुरोहित

सज्जनों किसी ने ठीक ही कहा है की " जननी जणे तो भक्त जण के दाता के सूर नहीं तो रहेजे बाजडी ,मत गूमाइजे नूर ' 6 अक्टूबर 1950 कॉ माता किशनप्यारी जी की कोख से श्रीमान जयनारायण जी पुरोहित (रोडजी पुरोहित ) के यहा एक पुष्पपल्लवित हुवा जो अपने क्रियाकलापों , लगन , कड़ी मेहनत साक्षेप समाज सेवा आदी के वशीभूत होकर आज हमारे समाज कॉ एक वट वृक्ष जेसी शीतलता प्रदान कर रहा हे श्री पुरोहित ने 1971 मे अपनी स्नातक की शिक्षा पूर्ण कर जीवन निर्वाह हेतु 1973 मे मुंबई आए छोटे मोटे रोजगार करते आपने 1991 मे अपने पैर मुंबई स्टॉक एक्सचेंज मे जमा लिए 1991 से जो उन्नति निरन्तर अग्रसर होती रही आज तक आपने उसके पीछे मुडकर नहीं देखा धार्मिक , धीर - गंभीर , स्पष्टवादी , अनुशासन प्रिय समाज की हर गतिविधि मे बढ़चढ़ कर भाग लेने वाले श्री हेंमचंद जी का मानना हे की व्यक्ति केवल अपने व अपने परिवार के लिए ही नहीं अपितु अपने समाज के लिए भी उत्तरदायी हे । उसे धर्मनिष्ठ होना चाहिए ना की धर्म -भीरू भूमण्डलीकरण एव वेशवीकरण की इस इक्कीसवी सदी मे वही समाज अपने स्थापत्य कॉ बचाए रख सकेगा जो निरंतर उन्नति की सोच रखेगा उन्नति की सोच शिक्षा मे ही निहित हे जेसा की आपको विदित हे फलोदी मे बन चुका बहुउद्देशीय जयनारायण मोहनलाल पुरोहित महाविद्यालय क निर्माण आपने ही करवाया हे इसके अतिरिक्त फलोदी स्थित मालीयो का बास पाठशाला मे नव निर्माण एव फर्नीचर ,जोधपुर पुष्करणा हॉस्टल मे एक बड़ी रकम देकर निर्माण करवाया ,फलोदी एव लोर्डिया की कन्या पाठशाला ने फर्नीचर ,फलोदी कुंडल एव आसपास कयी गोशाला क निर्माण व आर्थिक सहायता; विधवा आश्रम मे विशेष सहयोग लोर्डिया के साई बाबा मंदिर फलोदी श्रीनाथ जी की हवेली ,वेद भवन आदि ने कमरे व नियमित सहयोग आप दे रहे हे फलोदी मे ही पुष्करणा कटला न 1 मे आपने विशेष आर्थिक सहयोग दिया हे फलोदी स्थित आदर्श विद्या मंदिर मे 35लाख लागत से हॉल आदि क निर्माण करवाया हाल ही मे राजकीय अस्पताल फलोदी मे सोनोग्राफी कक्ष व अन्य उपयोगी सुविधाओ का निर्माण आपने करवाया हे इस प्रकार विभिन्न क्षेत्रो , चाहे पुजा स्थल हों , शिक्षा प्रांगण हों , चिकित्सा क्षेत्र हों , विद्यालय महाविद्यालय हों या न्यात गंगा का कोई कटला या गोशाला ही क्यो न हों श्री हेमचंद पुरोहित ने अब तक करोडो रुपयो का दान कर यह स्पष्ट कर दिखाया हे की पुष्करणे केवल कमाना ही नहीं बल्कि उसे सर्वसमाज कल्य़ाणकारी सेवाओ मे खर्च करना भी जानते हे धन्य हे उनके परिवार क़ो जहा ऐसे रत्न ने जन्म लिया _करुणा से होता मनुज~मानवता पहचान। परहित में करते रहें~सदा नेह अनुदान।।.........मोहित एम पुरोहित 8290114198

Tuesday 10 December 2019

लटियाल भक्त गुलाबचंद जी श्रीपत पुरोहित गुलाबचंद जी का जन्म विक्रम सम्वत 1785 क़ो बगसीराम जी पुरोहित के घर हुवा था माता पिता की तरह माँ लटियाल के परम भक्त थे साधारण साधारण पड़ लिखने पर भी मुंबई रोजगार हेतू चले गए औऱ वहा खूब धन कमाया थोड़े दिनो के बाद बीमार हो गए बीमार हो गए औऱ बीमारी भजन ऐसी की जीवन बचना भी मुश्किल हो गया उन्हें माँ लटियाल पर पूर्ण श्रध्दा थी इस कारण दिन रात उन्हें याद करते रहे औऱ सोते सोते हि चर्च की रचना कर डाली उस चर्च की पुकार से माँ लटियाल ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए औऱ स्वस्थ भी किया चर्च की पंक्तिया इस प्रकार से हे हे लटियाला देवी अब तो मेरो संकट निवार रे हे जगदम्बा देवी अब तो मेरो संकट निवार रे राज राजेश्वरी लटियाल ममाय , सांचे दिल से नर रटे कबहू ना आवे ताव हे लटियाल देवी ......... जहा बेठु माँ तेरो ही स्मरण , मे हू तेरो गुलाम अब तो मेर करो नी मैया देवो जीव रो दान हे लटियाल देवी ........ कोस पाच सो शहर फलोदी , आडो हे दरियाव भीड़ पड़े अपने भक्तो मे , जल्दी करो सहाय हे लटियाल देवी ........... आगे भक्त अनेक ऊबारे अब तो मोहि उबार संकट बोत सहयो हे मैया , जल्दी सुनो पुकार हे लगीयाल देवी ......... आपा बिराजौ शहर फलोदी , स्मरण करू ममाय मेर करू मोटी महारानी दिन दिन जोत सवाय हे लटियाल देवी ....... भूल चूक सब माफ करीजो , मोहे दर्शन की आश स्तुति गाई हे मैया , बंदर बंबई बास हे लटियाल देवी ....... पुष्करनो री करदे पालण , सबही तेरे दास पुरोहित गुलाब री यही विनती पूरो म्हारे मनडेरी आश उक्त चर्च पुकार से स्वस्थ होकर गुलाबचंद जी मारवाड़ आए तब उन्हें उनकी पत्नी ने बंबई की सारी घटना कह दी जबकि उन्होने कोई पत्र व्यवहार नहीं किया था उसकी पत्नी क़ो माँ लटियाल ने स्वप्न मे वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया था तब से गुलाबचंद जी की अटूट श्रध्दा बढ़ गयी यह चर्च उनके पोते वल्लभदास जी जब तक जीवित थे तब तक माँ लटियाल मंदिर मे हर शाम चर्च गाया करते थे दूसरे पोते पन्नालाल जी पुरोहित चर्च गाय करते हे जय श्री माँ लटियाल

Saturday 12 October 2019

पुजारी बाबा

पंडित जुगल किशोर जी ओझा जिन्हें प्यार और सम्मान से हम सब 'पुजारी बाबा' कहते है, फिर बसों से लोगो को रामदेवरा, आशापुरा, बाप के भेरू जी, लटियाल माता, कोलायत के कपिल मुनि और कोडमदेसर भेरूजी के दर्शन कराने धार्मिक यात्रा पर ले जा रहे है। एक लम्बा और अनूठा सिलसिला है ये। एक ऐसी परम्परा, जिसके प्रणेता है पुजारी बाबा जी और साक्षी है हम सब बीकानेर वाले। हमारे बीकानेर के अमूल्य रत्नों में से एक है पुजारी बाबा जी। जाने कितने साल हो गए शहरवासियों की सेवा में उन्हें तल्लीन देखते हुए। कितनी ऊर्जा है उनमें दूसरों की सेवा करने की, दूसरों की पीड़ा दूर करने की। जहां तक मेरी जानकारी है, शायद 1970 के आस पास ये यात्रा शुरू की थी पुजारी बाबा ने जो आज दिन तक लगातार जारी है। एक बस से शुरू हुई थी ये पुनीत यात्रा जो अब लगभग डेढ़ सौ बसों तक पहुच चुकी है। इन सभी बसों में अपने माता-पिता के साथ जाने वाली अविवाहित बच्चियों से कोई किराया नही लिया जाता है और बाकी सभी यात्री भी किराया दे दे तो ठीक वरना कोई अनिवार्य नही है। पूरे रास्ते चाय-नाश्ते के अलावा रामदेवरा में एक दिन सुबह 11 से रात 11 तक कढ़ाही का प्रसाद भी होता है। ऐसे संस्कार और परंपराओं से ही बीकानेर जीवित है और पुजारी बाबा जैसे सम्मानीय लोगो से ही हमारे बीकानेर का नाम है। पुजारी बाबा स्वस्थ रहें, आनंद से रहे और इसी तरह समाज और बीकानेर के भले के लिए मजबूती से खड़े रहे, डटे रहें। उनका आशीर्वाद प्रेरणा बन सभी को ऊर्जावान बनाये रखे।

Saturday 5 October 2019

फलोदी इतिहास

सिद्धू जी कल्ला का जन्म विक्रम सम्वत 1475 मे आसनी कोट मे हुवा था आपके पिता जी का नाम हरपाल जी था जेसलमेर मे महारावल केहर का राज्य था महारावल का पुत्र केलण महातेजस्वी पराक्रमी दूरदर्शी केलण लुद्र्वा से होता हुवा आसनी कोट पहुचा आशापूरा माता का मंदिर था इसलिए आसनी कोट नाम से जाना जाता था केलण अपना राज्य बढ़ाना चाहता था परिश्रमी के साथ दूरदर्शि भी था अतः आगे बढ़ता गया आसनी कोट सुरक्षित नहीं था सिद्धूजी गाव के प्रभावसाली व्यक्ति थे गाव मे आधीपति थे सिद्धू जी के एक कन्या थी जो बोयटि से बेर तोड़ रही थी बेर ज्यादा ऊचाइ पर थे इसलिए उसने अपनी जुती बोयटी पर मारी संयोगवस राजा का राजकुमार अभयसिह वहा से निकल रहा था औऱ उस पर एक पत्थर जा गिरा राजकुमार ने सत्ता के नशे मे कहा तुम जानती नहीं मे कौन हू युवती ने कहा मे जानती तभी राजकुमार ने मनः ही मनः तय कर लिया शादी करुगा तो इसी कन्या से करुगा आसनीकोट मे देवी का मंदिर था उसकी पूजा सिद्धू जी करते थे सिद्धू जी माँ लटियाल के अनन्य भक्त थे माता ने काल्लाजी को वरदान दिया था की संकट की घड़ी मे बुलाएगा मे तुरंत हाजिर हो जाऊंगी आपके परिवार मे उच्च कोटि के अश्व थे गाव मे हर वर्ष भादवा कृष्ण पक्ष तीज को मेले का आयोजन होता था जिसमे घुड़सवारी मे सिद्धू जी विजय हो गए राजकुमार हार गया परंतु राजकुमार अपनी हार मानने को तेयार नहीं उसने अपने पिता को उकसाया राजा कानो का कचा होता हे हे उसने अपने पुत्र के पक्ष मे फेसला सुना दिया राजा ने सिद्धू जज से घोड़ा मांगा पर सिद्धू ने मना कर दिया वा मुंहमांगी कीमत देने को तेयार थे लेकिन वह लेने को तेयार नहीं था सिद्धू जी गाव के प्रभावशाली व्यक्ति थे गाव के लोग उनके कहे अनुसार चलते थे श्राद्ध पक्ष आ गया सबने अच्छी तरह से वार्ता कर ली माँ लटियाल की रूहा से कंठ स्तुति की माता ने कहा ऐसे शासन मे रहना उचित नहीं जे देवी के अनुसार विक्रम सम्वत 1515 आसौज शुक्ल द्वितीया को रातो रात रवाना हो गए सबसे आगे देवी की प्रतिमा कन्या तथा सिद्धू जी गाड़े पर बेठे थे उस समय दूरी को कोस मानते थे आज के हिसाब से 120 किलोमीटर था काफिले मे अलग अलग वर्ण के लोग थे इतिहासकार मुहनोत नेणसी की अनुसार 140 गाडो के साथ रवाना हुवे थे राजा ने सेना को सिद्धू जी को पकड़ने भेजा सेनापति ने देखा काफिला चल रहा हे फासला मात्र 20 फिट का हे पर वह पकड़ नहीं पा रहा हे आश्चर्यचकित होकर राजा नेसिद्धू से बार बार विनय की पर सिद्धू ने उनकी एक ना सुनी औऱ राजा अपने निवास पर चले गए देवी की कृपा से शुभ शगुन हुवे खर डावा विष जीवणा मृग मालाणा होय तिलक लगा ब्राह्मण क्षत्रिय बंदूक लिऐ , धान का गाडा भरा ', गौद मे लिऐ नवयुवती मिली , पानी क़ घड़ा लिऐ पणीहारी सुगंना चिड़िया सिद्धू जी ने समज लिया की अब सब भला ही भला हे लटियाल क़ जयकारा लगाते हुवे काफिला रासला , भादरिया आया जहा भी देवी उपासकों ने खूब सेवा की सिहडा से बावडी आए उनके साथ एक कानूगा परिवार भी था सेठजी के पुत्र नहीं था सेठजी की पत्नी गर्भवती थी रास्ते मे कोचरी (चिड़िया )बोली देवी की कृपा से सेठ के पुत्र हुवा कोचरी के शगुन के कारन नाम कोचर रखा जो आगे जाकर कानुगा मे उपजाति हुवी आगे शाम के समय गाड़ा खेजड्ले की जड़ से अटक गया रेट थी पता नहीं चला सिद्धू जज नीचे उतरे अपंजीकृत नजर दौड़ाई सब सुनशान दिखाई दे रहा था देवी से अरदास की यहा तो कुछ भी नहीं हे देवी का आदेश किया अब यही बसों जिस समय गाड़ा अटका था खेजड़ के दो भाग हो गए थे जो आज भी स्थित हे विक्रम संवत 1515 मे स्थापित माता का मंदिर छोटे मंदिर के रूप मे था 562 वर्षो मे आबादी वद गयी प्राय देवी का मंदिर ऊंचे स्थान पर होता हे अतः पास मे ही नया मंदिर बनाकर सिंहासन नए मंदिर मे स्थापित किया गया लटियाल माता मदिर नीव खुदाई की रात बंशीलाल जी व्यास गेलाणी को स्वप्न मे देवी का दृष्टाग हुवा की नीव कमजोर रह गयी दूसरे दिन दुबारा नीव खुदाई की तब उसमे गनेश जी प्रतिमा निकली जो वर्तमान मे शिवसर तालाब पर स्थित हे माता जी खेजड़ी की छाल को नाखून से निकालकर लोग स्वर्ण के रूप मे रखते हे लटियाल माता जी के निज मंदिर मे 562 वर्षो से अखंड ज्योत जल रही हे इसमे काजल के स्थान पर केशर उत्पन्न होता हे फलोदी का किला बनवाने के लिऐ पुष्करणा ब्राह्मण फला की विधवा पुत्री ने धन दिया इसलिए राव हमीर ने फलाधी कहलाया जिसका अर्थ हे बेटी इस प्रकर फलाधी क़ हूवा फला की बेटी जो आगे जाके फलोदी हुवा लटियाल मंदिर के पास लटियाल पूरा स्कूल के बाजू मे एक कुंआ बेरी हे उस समय पानी की कमी थी फला ने स्वयं बेरी खुदवायी थी दोहा संवत पनरे सौ पेतालिस , ले लटियालि रो नाम महीना कार्तिक शुक्ल द्वादशी , सिंधू पधारे धाम 🖋🖋 मोहित एम पुरोहित फलोदी 8290114198

महामानव सेठ अनोपचंद् जी हुडिया

फलोदी को आवश्यकता है आज फिर ऐसे महामानव की -- अब स्मृति शेष है -- महामानव स्व. अनोपचंद जी हुडिया " सेवा ही परमोधर्म व अहिंस...