Tuesday 10 December 2019
लटियाल भक्त
गुलाबचंद जी श्रीपत पुरोहित
गुलाबचंद जी का जन्म विक्रम सम्वत 1785 क़ो बगसीराम जी पुरोहित के घर हुवा था माता पिता की तरह माँ लटियाल के परम भक्त थे साधारण साधारण पड़ लिखने पर भी मुंबई रोजगार हेतू चले गए औऱ वहा खूब धन कमाया थोड़े दिनो के बाद बीमार हो गए बीमार हो गए औऱ बीमारी भजन ऐसी की जीवन बचना भी मुश्किल हो गया उन्हें माँ लटियाल पर पूर्ण श्रध्दा थी इस कारण दिन रात उन्हें याद करते रहे औऱ सोते सोते हि चर्च की रचना कर डाली उस चर्च की पुकार से माँ लटियाल ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिए औऱ स्वस्थ भी किया
चर्च की पंक्तिया इस प्रकार से हे
हे लटियाला देवी अब तो मेरो संकट निवार रे
हे जगदम्बा देवी अब तो मेरो संकट निवार रे
राज राजेश्वरी लटियाल ममाय , सांचे दिल से नर रटे कबहू ना आवे ताव
हे लटियाल देवी .........
जहा बेठु माँ तेरो ही स्मरण , मे हू तेरो गुलाम
अब तो मेर करो नी मैया देवो जीव रो दान
हे लटियाल देवी ........
कोस पाच सो शहर फलोदी , आडो हे दरियाव
भीड़ पड़े अपने भक्तो मे , जल्दी करो सहाय
हे लटियाल देवी ...........
आगे भक्त अनेक ऊबारे अब तो मोहि उबार
संकट बोत सहयो हे मैया , जल्दी सुनो पुकार
हे लगीयाल देवी .........
आपा बिराजौ शहर फलोदी , स्मरण करू ममाय
मेर करू मोटी महारानी दिन दिन जोत सवाय
हे लटियाल देवी .......
भूल चूक सब माफ करीजो , मोहे दर्शन की आश
स्तुति गाई हे मैया , बंदर बंबई बास
हे लटियाल देवी .......
पुष्करनो री करदे पालण , सबही तेरे दास
पुरोहित गुलाब री यही विनती पूरो म्हारे मनडेरी आश
उक्त चर्च पुकार से स्वस्थ होकर गुलाबचंद जी मारवाड़ आए तब उन्हें उनकी पत्नी ने बंबई की सारी घटना कह दी जबकि उन्होने कोई पत्र व्यवहार नहीं किया था उसकी पत्नी क़ो माँ लटियाल ने स्वप्न मे वस्तुस्थिति से अवगत करा दिया था तब से गुलाबचंद जी की अटूट श्रध्दा बढ़ गयी यह चर्च उनके पोते वल्लभदास जी जब तक जीवित थे तब तक माँ लटियाल मंदिर मे हर शाम चर्च गाया करते थे
दूसरे पोते पन्नालाल जी पुरोहित चर्च गाय करते हे
जय श्री माँ लटियाल
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