Wednesday 26 June 2019

माँ लटियाल विनयगाथा अर्थ सहित

.#श्री_लटियाळ_विनयगाथा
(कथा संदर्भ सहित)
#कवि_नवल_जोशी रचित { लटियाल भक्त }
( #श्री_लटियाल माता का प्रसिद्ध शक्तिपीठ पश्चिम राजस्थान के #फलोदी नगर में स्थित है )
¤ दूहा ¤
जगजाहिर मरु जांमणी , जन ध्यावत जगतम्ब ।
असल राय #आथूण री , अटल मात अवलम्ब ॥१॥पिछम राय लटियाळ रा , #परचा प्रतख प्रमांण ।
सुजन राजवी रंक सब , भजत उगंता भांण ॥२॥#आथूण =पश्चिम/पिछम #परचा=परिचय/चमत्कार¤ छंद-सारसी ¤#मरुदेश गोदी में फळोदी विघ्नरोधी रज्जिका
लटियाळ देवी सरबसेवी है सदैवी सज्जिका ।
विरदाळ माई पुर बसाई छतर छाई छांवड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥१॥- मरुप्रदेश की गोद में 'फलोदी' नगर को बसाने वाली,नगर पर छत्र की भांति छाया करने वाली,वहाँ की विघ्न रहित रजकण में अनुपम सजधज के साथ विराजमान हे लटियाल माता ! हमारी व्याधियों और बाधाओं को दूर करो ॥१॥#'जैसाण' नुगरा जांण *'आसनि' त्याग 'सिद्धू' चालिया
तज खेत-थाळा ले उचाळा हेर गाडा हालिया ।
माँ आप संगे सींव लंघे ध्रुव दिसंगे धावड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥२॥
#जैसाण=जैसलमेर *आसनि=आसनीकोट नामक ग्राम#कथा-संदर्भ :-
- उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार विक्रमाब्द 15वीं सदी के उत्तरार्ध से 16वीं सदी के पूर्वार्ध में जैसलमेर(जैसाण) रियासत के ग्राम आसनीकोट में रहने वाले 'सिद्धू कल्ला' नामक लुद्रवंशीय पुष्करणा ब्राह्मण देवी भगवती के अनन्य उपासक थे और क्षेत्र के प्रभावशाली नेतृत्वसंपन्न व्यक्तित्व भी ।तत्कालीन असुरक्षित राजनीतिक परिस्थितियों के कारण अपनी ईष्ट देवी की प्रेरणा से उन्होंने अपने मित्र-बांधवों व संरक्षित परिवारों सहित आसनीकोट त्याग कर बैलगाड़ियां जोत कर गांव से उत्तर दिशा की ओर पलायन कर लिया ।कूच में दल के सबसे आगे की बैलगाड़ी पर देवी माता के विग्रह को प्रतिष्ठित किया गया ।140 बैलगाड़ियों के साथ यह काफिला दिन-रात चलते हुए कुछ दिनों बाद जैसलमेर राज्य की सीमा से बाहर निकल आया ॥२॥#झंखाड़-झाड़ा जबर जाळा खाड-खाळा खूंदिया
कोसां दुरादुर ताळ-तालर धोर-भाखर रूंदिया ।
अधबीच *ओरण आय *धोरण खेजड़ै अटकावड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥३॥*ओरण=अरण्य/जंगल *धोरण=धोरा धरती में रहने वाली- उल्लेखनीय है कि यह पलायन चौमासे में (भादो-आश्विन माह में) हुआ था । ऐसे में झाड़-झंखाड़ों, खंदकों-नालों,पहाड़ियों,नालों,तालाबों ,धोरों ,मैदानों को रौंदते हुए ,कोसों लम्बे रास्तों के संकटों को झेल कर सिद्धू कल्ला के नेतृत्व में यह काफिला एक उजाड़ जंगल से गुजर रहा था कि अचानक देवी माँ के विग्रह वाली अग्र बैलगाड़ी के पहिये एक विशाल खेजड़े से भिड़ कर जड़ों के साथ अटक गये और लाख प्रयत्नों के बाद भी टस से मस नहीं हुए ।इसी जद्दोजहद में खेजड़े का एक तना जड़ से जुड़े रहकर भी जमीन की तरफ कमान की तरह लटक(लचक) गया ।(यह खेजड़ा आज भी उसीतरह लचका हुआ मंदिर परिसर में मौजूद है) ।कहते हैं तब उस काफिले को उसी जंगल में डेरा डालने की प्रेरणा हुई ॥३॥#शुभदाय नखतां नींव रखतां थांन सिद्धू थापियौ
आदेश पायां पुर बसायां नाम निसदिन जापियौ ।
सद साल पंद्रै सौ पँदर पट राज पद परखावड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥४॥-कहते हैं इसप्रकार बैलगाड़ी के अटकने,खेजड़े के लटकने और देवी माँ के नटने (आगे बढ़ने से इंकार करने) के दैवीय संकेत को स्वीकार कर सिद्धू कल्ला के काफिले ने उसी स्थान पर बसना तय किया ।शुभ मुहुर्त में (आश्विन शुक्ल अष्टमी संवत 1515 में) देवी माँ की प्रतिमा को उसी खेजड़े के निकट प्राणप्रतिष्ठित किया गया और पूजा-अर्चना प्रारंभ की गई ॥४॥(कहा जाता है कि खेजड़े के लटकने और देवी द्वारा केश-लटें बिखेरते हुए सिर हिलाने (आगे बढ़ने से 'नटने') जैसे संकेतों के फलस्वरूप माता का यह स्वरूप 'लटियाल' नाम से प्रसिद्ध हुआ ।इस उजाड़ स्थान को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान के फलस्वरूप 'फला' नाम की एक महिला,जो संभवतः सिद्धू कल्ला की बहन या पुत्री थी, के नाम पर बस्ती का नामकरण 'फलाधी' 'फलोधी' अथवा फलवृद्धिका किया गया । उल्लेखनीय है कि राजस्थानी में 'धी' शब्द का अर्थ पुत्री होता है ।'फला धी'अर्थात फला नामक पुत्री ।)#शिवशंभवाणीशंखपाणी निर्मलाणी नाहरी
जनहीन जंगळ मांय मंगळ जगमगाणी जाहरी ।
आशापुराणी माडराणी ईशराणी *आवड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥५॥
*आवड़ी= लोकपूज्य आवड़ माता
(संदर्भ ग्रंथों के अनुसार शास्त्रोक्त देवी हिंगलाज के प्रथम पूर्णावतार के रूप में प्रतिष्ठित लोकदेवी-आवड़ा/आवड़ी,आई माता,तनोटराय,तेमड़ाराय,भादरियाराय, घंटियाली आदि 52 नामों से विभिन्न स्थानों पर पूजी जाती है,जिनमें एक नाम 'लटियाल' भी है ॥५॥)#सिणगारसुंदर पाट मन्दर आभमण्डल केशरी
आलोक ओजस ताप तेजस रूप राजस ईशरी ।
सद्काज आयुध धार चौकस सिंह पर असवारड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥६॥ब़ाजंत ब़ाजा घोर गाजा स्वार-सांझां आरती
डमडम्म डंकां नाद शंखां दिग-दिगंतां भारती ।
नारेळ चढ़ता माथ नमता पावड़ी दर पावड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥७॥जन-आपदा दुख दूर करणी खेम करणी खेमदा
आई *असांजै नगर नाजै हीय *मांझै हेमदा ।
फलवृद्धिका फलदाय भक्तन पालिका परचावड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥८॥
*असांजै=हमारे *मांझै=मेरे/भीतरमाता विलक्षण पूत-रक्षण गुण सुलक्षण दीजिये
अरदास बारम्बार अम्बा आस पूरण कीजिये ।
कवि 'नवल' भज्जे काज सज्जे लाज रखजे आवड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥९॥¤ छप्पय:
अवनी नगर उदार , प्राचि दिस द्वार फळोदी ।
दिव्य धाम दरबार , परम लटियाळ प्रमोदी ॥
प्रबल भक्त प्रतिपाल , सबल सिंह पीठ सवारी ॥
मरु लटियाळी मात , भव्य दरसण भवतारी ॥
सदकाज सगळा सिद्ध कर-आबद्ध कवि 'जोशी' कथै ।
भर अंक रखजै बद्ध माँ हरवक्त आसीसां मथै ॥¤ छंद- सारसी ¤ ¤ पाठ-फळ-
आ विनयगाथा विनत माथा पाठ साचा जो करै
सुख सांयती निधि नेह व्यापै सिद्धि साध्यां वापरै ।
कर दूर कंटक मेट संकट विकट जट सुलझावड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥सद साल चहुवत्तर हजारी दोय आसू माह नै
सुद आठमी तिथि कवि ह्रिदै लटियाळ हरसी आयनै ।
गाथा रचाई आप माई कण्ठ कवि विरदावड़ी
लटियाळ माता मेट व्याधा टाळ बाधा मावड़ी ॥
-----@@@@----(इति श्री लटियाल विनयगाथा कवि नवल जोशी रचित दिवस

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